वीर लोरिक : प्रमाणिकता एवं भौगोलिक जाँच पड़ताल
वीर लोरिक और लोरिकायन
किसी भी क्षेत्र या समाज की लोकगाथा उस क्षेत्र या समाज विशेष के जीवन चरित्र तथा लोक संवेदना का प्रकटीकरण होता है । जिसमें समाजिक स्तर पर ऐसे लोकोपकारी वीर नायक को माध्यम बनाया जाता है जिससे जीवन चरित से समाज को प्रेरणा मिलती है । वीर लोरिक एक ऐसे ही लोक नायक हुवे जिनके जीवन चरित को लोक गाथा के रूप में समाज के सभी वर्गों ने अपनाया । देखते ही देखते इनकी ख्याति समस्त उत्तर भारत विशेषकर बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश के जन समाज के कंठो में व्याप्त हो गई । लोक कंठो में व्याप्त इस लोक गाथा ने एक कंठ से दूसरे कंठ होते हुवे मीलो लंबा सफर तय किया । मौखिख रूप में सफर करने के कारण इसमें आंशिक रूप से स्थानीय जनों द्वारा थोड़ा बहुत तथ्यात्मक जोड़ घटाव भी होता रहा । स्थानीयता के संग जुड़ाव हो सके इसके लिए काल्पनिक स्थल औऱ कुछ काल्पनिक पात्रों को या तो गाथा में जन्म दिया गया या फिर किसी पात्र का नाम तक परिवर्तन कर दिया गया । इसका परिणाम ये हुवा की जब इन लोक नायकों पर शोध कार्य आरंभ हुवा तो शोधकर्ताओं ने अपने शोध पत्रों में कई विसंगतियों को शामिल कर लिया और इन विसंगतियों ने धीरे-धीरे सत्य का आवरण पहन ठोस रूप धर लिया और वर्तमान में वही विसंगतियां प्रमाणिक भी मानी जाने लगी।
वीर लोरिक की लोकगाथा इससे सर्वाधिक प्रभावित हुई । इसके पीछे कई कारण थे, एक तो ये प्राचीनतम लोक गाथाओं में से एक है, (लोरिक लोकगाथा का सर्वप्रथम उल्लेख 14वीं शताब्दी में ज्योतिरीश्वर रचित वर्ण रत्नाकर में मिलता है) संग-संग इसने लोक कंठो के माध्यम से काफी अधिक क्षेत्रीय विस्तार (बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि) पाया । ऐसे में वीर लोरिक को ले कर एक भ्रांति हो गयी है कि लोरिक गाथा में वर्णित लोरिक का जन्म स्थान गौरा ग्राम बलिया उत्तर प्रदेश में है । जबकि अगर हम लोरिक के बिहार कनेक्शन की बात करें तो लोरिक का जन्म स्थान गौरा बिहार में स्थित जिला मुख्यालय, पुर्वी चंपारण, मोतिहारी से 45 km दूर पश्चिम-दक्षिण अरेराज प्रखंड में लौरियागढ़ के पास है । ठीक उसी तरह अगौरा ग्राम जो लोरिक की प्रेयसी मांजरी का जन्म स्थान है वो बिहार के दरभंगा जिला मुख्यालय से 35 km दूर बहेड़ी में स्थित है । लोरिक मल्ल विद्या (कुश्ती) में निपुण था । जिस सिलहट अखाड़ा में लोरिक मल्ल प्रधान के रूप में पदस्थापित था । वह अखाड़ा नेपाल के वीरगंज से 25 km दूर पश्चिम-उत्तर में स्थित है । लोरिक गाथा मे विवाह पुर्व तिलक दे लोरिक को उसके भावी ससुर जब अपनी पुत्री हेतू वर के रूप में लोरिक चुनाव निश्चित करते हैं तो सिलहट अखाड़ा से लोरिक को लाने का प्रसंग है । जिसे हम निम्न पंक्ति में देख सकते हैं-
से जाके रौ बैमनमा हमर बेटा के, सिलहट से बोलेने अबियौ यौ आब ।
कुटुम देखतै पसिन करतै हमर बेटा के, तिलक चढ़ा देतई हौ आब ।।
लोरिक गाथा में ही उल्लेखित है कि लोरिक के विवाह के लिए जो बारात अगौरा गांव के लिए निकला उसने दुरगौली नामक स्थान पर धोबी के कपड़ों को लूटा । यह स्थान दरभंगा जिला के सकरी से 10 km पूर्वोत्तर में है । इसी तरह बगरा बाजार में भी बारातियों द्वारा लूट-पाट किया गया जो दरभंगा से 20 km पूर्व-दक्षिण बहादुरपुर के पास है । इतना ही नही लोरिक खुद के लिए मोर मुकुट और अपनी पत्नी के लिए आकाशतारा पटोर एवं माणिक चोली का उपहार कोशा मालिन से मधुबनी जिला के जगवन गांव से लाते हैं ।
लोरिक गाथा में मांजरी के अलावे एक और मुख्य स्त्री पात्र अप्रितम सौंदर्य की स्वामिनी चनैन की चर्चा है जो अगौरा गांव के राजा सहदेव की बेटी है । जिसकी शादी शिवधर नाम के नपुंसक राजकुमार से होता है । पर जब राजकुमार की नपुंसकता का चनैन को पता चलता है तो बहुत दुःखी होती है । तद्पश्चात राजकुमार की इच्छा से विवाह संबंध का त्याग कर जब वो वापस अगौरा आ रही होती है तो रास्ते मे बैठा चमार द्वारा चनैन के इज्जत लूटने का असफल प्रयास किया जाता है । आगे की कथा में जब बैठा चमार के इस कृत्य के लिए लोरिक उसे अपने हाथों मृत्युदंड देता है तो चनैन लोरिक से प्रेम कर बैठती है और उसे अपने सौंदर्य जाल में फांस अगौरा से हरदीथान नामक स्थान पर भाग जाती है । यह हरदीथान स्थान बिहार के सुपौल जिला मुख्यालय से 10 km पूरब स्थित है । यहाँ लोरिक और चनैन सोमन साहू के यहाँ आश्रय लेते हैं जो जगह हरदीथान से 5 km उत्तर दिशा में स्थित है ।
इधर चनैन का रूप सौंदर्य उसका दुश्मन बना फिर रहा था । हरदीगढ़ जहां का राजा मोचनि था वो भी चनैन के रूप लावण्य से मोहित था उसने लोरिक को मारने के उद्देश्य से उसे अपने सेनापति गज भीमल के पास गेरुला अखाड़ा, गौरीपुर भेजा । जहाँ युद्ध मे गज भीमल लोरिक के हाथों मारा गया । यहाँ हरदीगढ़ और गौरीपुर दोनों बिहार के मधेपुरा जिला के सिंहेश्वर थान के पास स्थित है । इसी गौरीपुर से पूरब करूआ धार बहता था जिसकी चर्चा लोरिक गाथा में भी है -
मंगरा रोबै जार-बेजार
कहलक मंगरा सुनअ हो सामी
पहिने हमरा धूअ देहबा आ खूर
लोरिक चलल मंगरा संग करुआ धार ।
हरदिगढ़ राजा मोचनि जब अपने इस योजना में असफल हो गया तो उसे पुनः लोरिक को न्यौरी गढ़ के राजा हरबा-बरबा के पास भेजता है । हरबा-बरबा भी लोरिक के हाथों मारा जाता है । यह न्यौरीगढ़ भी दरभंगा जिला के बहेड़ी प्रखंड से 5 km उत्तर-पुर्व में स्थित है । लोरिक गाथा में ही ये उल्लेख है कि हरबा-बरबा ने अपने भांजे कोठरामगढ़ के राजकुमार अंगार को अपने अग्निबाण से लोरिक को मारने के लिए आमंत्रित किया था । बदले में राजकुमार अंगार को कोरथु, रसियारी- रसीले आम के लिए प्रसिद्ध, भखराईन- उच्च गुणवत्ता वाले चावल के लिए प्रसिद्ध, राघोपुर- मीठे ईख के लिए, पतैली- पान के लिए प्रसिद्ध और घिवाहि- दूध, दही, घी के लिए प्रसिद्ध गाँव उपहार में दिया था । ये सभी गांव वर्तमान के दरभंगा एवं मधुबनी जिला में है।
हरदिगढ़ के पतन के बाद लोरिक और चनैन सन्हौली घाट रहने को चले जाते हैं । यह सन्हौली घाट वर्तमान में खगड़िया जिला रेलवे स्टेशन के नजदीक दक्षिण दिशा में स्थित है । एक घटनाक्रम का उल्लेख और है कि करियन गांव का कुम्हार करना लोरिक को मल्ल युद्ध मे परास्त कर उसे बंदी बना लेता है । करियन समस्तीपुर जिला मुख्यालय से 50 km पूर्व-उत्तर रोसड़ा थाना स्थित एक गांव है । इस करना कुम्हार को मार कर गनौली का राजा गंगा लोरिक को बंधन मुक्त करता है । यह गनौली गांव मधुबनी जिला के बाबूबरही प्रखंड मुख्यालय से 3 km दक्षिण स्थित है ।
लोरिक की धर्म ब्याहता स्त्री मांजरी ने पेड़ से गिरे एक कौवा के टूटे अंडे को मातृ स्नेह दे कर सुरक्षा की थी जिससे निकले कौवा बाझिल को उसने पुत्रवत स्नेह दे कर पोसा था । मांजरी जब लोरिक के विरह से व्याकुल हो जाती है तो वह अपने बाझिल को पत्र ले कर लोरिक के पास भेजती है । रास्ते मे बाझिल चमार राजा कोल्हमकड़ा के गढ़ को आग लगा देता है । यह कोल्हमकड़ा गढ़ शिवहर जिला के पुरनहिया प्रखंड में स्थित है । इसी तरह लोरिक के सिलहठ अखाड़ा के मित्र बैंठा चमार का गांव पिपड़ी की भी चर्चा है जो मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय 25 km पश्चिम स्थित है । इसके अतिरिकर एक जगह सती मांजरी अपने प्रदेश को याद करते हुवे कहती है कि -
पूरब जे पुरनियाँ पूजलौं, पश्चिम रे बिहार ।
उत्तर जे नेपाल पूजलियै, दक्षिण गंगा धार ।
रौता जे तिलकेश्वर पूजलौं, झाड़ा बैद्यनाथ ।
भोरे उठि के हाथ उठौलिअई, दिनकर दीनानाथ ।
उपरोक्त कथन में जिस क्षेत्र की चर्चा चारों दिशा में अवस्थित होने की बात कह सती मांजरी ने उसे अपना प्रदेश कहा है। उस समय मिथिला की सीमा पूरब में पूर्णियाँ, पश्चिम गढ़ बिहार (लौरियागढ़ चंपारण), उत्तर में नेपाल और दक्षिण में गंगा नदी तक थी ।
आलेख में ऊपर वर्णित सभी स्थल पर नजर दे तो आप देखेंगे कि ये सभी स्थल वर्तमान उतरी बिहार (मिथिला) में अवस्थित हैं । जिससे ये प्रमाणित होता है कि लोरिक का उद्गम उत्तर प्रदेश से नही अपितु बिहार, मिथिला से है ।
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