कोहबर औऱ नैना जोगिन : मिथिला चित्रकला

नैना-जोगिन और मिथिला चित्रकला
मिथिला में बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभावों के कारण कितने ही गृहस्थों ने या तो गृहस्थाश्रम का त्याग कर बौद्ध मताबलम्बी बनने का फैसला किया या फिर कितनों ने आजन्म ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करने का प्रण कर बौद्ध धर्म को अपनाने का फैसला किया । आज भी मिथिला में लोग-बाग विवाह योग्य लड़के या लड़की के विवाह नहीं करने के फैसले की घटनाओं को बुरी नजरों का करामात बताते हैं । इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म के साथ-साथ तमाम ऐसी शक्तियाँ जो नव विवाहित जोड़ों के परस्पर आकर्षण को कम कर उन्हें गृहस्थाश्रम के मार्ग से भविष्य में पदच्युत कर सकता है, उनके कुप्रभावों से नव विवाहित युगल जोड़ों को दूर रखने हेतू विवाह के विध-व्यवहार में जोग-टोन से संबंधित कई तरह के विध किये जाते हैं । नैना-जोगिन चरित्र मैथिल विवाह संस्कार की एक ऐसी ही अवधारणा है । जिसके तहत लोकाचार रूप में कोबर घर के चारो दिशाओं को तांत्रिक परम्पराओं के हिसाब से कोबर घर के चारों कोणों में नैना जोगिन का चित्रण कर बाँधा जाता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते है कि नैना जोगिन के द्वारा नव वर-वधु में परस्पर आसक्ति (सम्मोहन) के भाव को बनाये रखे जाने का उपक्रम किया जाता है ।
इस लोकाचार के तहत कोबर घर में विवाह बंधन में बंधने वाली कन्या और उसकी छोटी बहन (वर की साली) को साथ में लाल कपड़ा या साड़ी से ढँक कर बैठा दिया जाता है । विधकरी (जो विवाह संबंधी सभी विध-व्यवहार को सम्पन्न करवाती है) माथे पर बिअनि (बांस का हाथ पंखा) को रख कोबर घर के पूर्वी कोण में झुक कर खड़ी हो वर से पुछती है कि आप कहाँ से आए हैं ? वर के उत्तर पश्चात विधकरी वर से पूर्वी कोण के दीवाल पर आरतक पात को पिठार (पीसा हुवा चावल और पानी का घोल) की मदद से सटवाती है । यह कर्म कोबर घर के सभी बांकी तीनों कोण पर वर के हाथों विधकरी द्वारा संपादित करवाया जाता है । साथ में एक फकरा (लोकोक्ति) पढ़ा जाता है -
'असि बंगला, बसि बंगला,
सुरपुर स हम आयल छि,
कांधे कामरु माथे बिअनि,
हाथ में टुनटुन पैर में कारा,
लाले बथनियाँ कर दतमनियाँ,
तरहति पर दही जन्माओल,
कोठी कन्हा बरद घुमाओल,
चूल्हाक पूता सारी उपजाओल,
सुखले नदिया नाव चलाओल,
सुनई छलियैन बुझै छलियैन,
जनक जी बेटी के बियाह होई छैन,
जोग लियअ तरुआरि दियअ,
कांच करची काटि क बंगाल घर छारी क,
एके पटोर तर दु दु सुकुमारि,
बाम छउ कनियाँ, दहिन छउ साईर,
हृदय विचारि क ली हैं उठाय,
पहिल जोगिन जोग ठानल आपन सासु हे ।।'
उपर्युक्त लोकोक्ति के माध्यम से विधकरी जो जोगिन (योगिनी) बन कर आती है वो कहाँ से आई है, कौन है ? अपना परिचय तो देती ही है साथ ही साथ वो अपने जोग (योग) शक्ति का बखान भी करती है और अंत मे वर को लाल कपड़ा या साड़ी के अंदर ढकी अपनी पत्नी को पहचानने की युक्ति दे वर को असमंजस की स्थिति से उबारती है । कहने का तात्पर्य ये है कि नैना जोगिन अपनी जोगशक्ति (योगशक्ति) से जिस प्रकार यहाँ वर की मदद अपनी पत्नी को पहचानने में करती है । इसी तरह यह ऐसी समस्याएं जो बुरी नजर या जोग-टोन के कारण उन्हें गृहस्थाश्रम से पथभ्रष्ट करने उनके गृहस्थ जीवन में यदि कभी आती है तो अपनी शक्ति से वह समस्या का समाधान करेगी । इस आशीर्वाद के साथ नैना जोगिन विवाह कर्म में उपरोक्त लोकाचार के माध्यम से शामिल होती है । जिसके निमित्त कोबर घर के चारो कोणों में नैना जोगिन का चित्रण किया जाता है जो कि मिथिला चित्रकला का एक अभिन्न अंग है ।
फोटो साभार- Ganga Devi: Traditions and Expressions in Mithila Painting by Jyotindra Jain

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